(1) 50 वर्ष से अधिक समय से अवैध कब्जा करके रहने के लिए रैल विभाग के भूभाग का उपयोग किया और जब वह भूभाग की आवश्यकता रैल विभाग को हुई तो न्यायालय गए, न्यायालय से केस हार गये तो आंदोलन पर बैठ गए
(2) स्मरण रहे की रैल विभाग और अवैध कब्जे दारो का केस 2007 से ही न्यायालय में चल रहा था
(3) 15 वर्ष लगे और न्याय के नाम पर क्या मिला "अवैध कब्जेदारो को वैध घर दिया जाना चाहिए"
कोई पूछ ने वाला नही है की न्यायाधीश महोदय अवैध कब्जेदारो को वैध घर देने के लिए जो धन राशि लगेगी वो कोन देगा?
अगर सरकार देगी तो क्यों देगी?
अवैध कब्जेदारो से देश का क्या भला हुआ है?
इनको घर देने के लिए जो भी धन राशि लगेगी वो नेता और न्यायाधीश अपनी जेब से दे, ना कि भारतवासी ओ के पैसे बर्बाद करे
(4) अब सवाल उठता है कि गलती न्यायालय की है कि सरकार की पूरी घटना को सही से समजोगे तो पता चलेगा कि दोनों की मिली भगत है